Tuesday, November 17, 2009

अजनबी आवाज़



इक आवाज....
एक अजनबी आवाज़
हर वक्त मेरे साथ रहती है
दिन हो या के हो रात रहती है
मैं इसे देख सकता हूँ
छू सकता हूँ
महसूस करता हूँ...
सांसों के साथ जिस्म में समा जाती है
फिर लफ्ज़ों के साथ मुंह से निकल आती है,
मैं पूछता हूँ 'कौन हो?'
तो चुप हो जाती ही
और अचानक
खिलखिलाते हुए पास से गुज़र जाती है
मैं हैरां हूँ ,परेशां हूँ
क्यों ये अजनबी अपना तआरुफ़ नहीं कराती है...
ये आवाज़ सदियों से मुझे सताती है



पर आज की शब जब तुमसे मिला तो यूँ लगा ...
तुमसे मिलने से सदियों पहले तुम्हारी आवाज़ से मिल चुका
था

4 comments:

  1. bahut umda abhivyakti , abhinav, badhaai aur shubhkaamnayen.

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  2. Nice One,
    दिवानगी के छ्लावे अजीब,
    कभी दिल से इतने दूर,
    कभी नज़रों के इतने करीब.

    Thanks for visiting and following "सच में".

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  3. nice shayari....!!!

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