Sunday, January 24, 2010

यादों की लिस्ट



सहेज कर रखा है अब तक
हर उस दिन को जब तुम मुझसे मिल थी
और हर उस रात को भी
जो कटी तुम्हारे बगैर, आँखों में...


सहेज रखा है अब तक

अपने रिश्ते की थोड़ी सी गर्मी
चादरों की सिलवटें औ' तकिये की नरमी

चूड़ियों की खनखनाहट
और बदन की सनसनाहट
मेरे कपड़ो पे दाग काजल के
तेरी चुप्पी और शोर बादल के
ना जाने की मिन्नतें
फिर मिलने की हसरतें

हर आहट पे घबडाना तेरा
हर छुअन पे शर्माना तेरा
मेरे जेहन ,मेरी रूह में
हर जगह सरमाया तेरा

करीनें से रखी है हर याद तेरी
और कुछ फैली हुयी है इधर-उधर
मेरे कमरे में....

सहेज रखा है अब तक
उस दिन को भी ,जिस दिन हम हुए थे जुदा
और उसके बाद की हर उस रात को...

जो होती जाती है स्याह ॥
हर रोज़ और भी स्याह!




yadoon ki list.

sahej kar rakha hai ab tak
har uss din ko jab tum mujh se mili thi
aur har uss raat ko bhi
jo kati tumhaare bagair, aankhon me...

sahej rakha hai ab tak

apne rishte ki thodi si garmi
chadaron ki silwatein,takiyein ki narmi
chodion ki khankhanahat
aur badan ki sansanahat
mere kapdon pe daag kajal ke
teri chuppi aur shor badal ke
naa jaane ki minnatein
fir milane ki hasratein
har aahat pe ghabrana tera
har chhuan pe sharmana tera
mere zehan, meri ruh mein
har jagah sarmaya tera

kareene se rakhi hai har yaad teri
aur kuch faili huyi hai idhar-udhar mere kamre me...
sahej kar rakha hai ab tak
uss din ko bhi,jis din hum huye the juda
aur uske baad ki har uss raat ko
jo hoti jaati hai syah
har roz aur bhi syah!











Wednesday, November 18, 2009

तलाश

बड़ी मुद्दत से तलाश रहा हूँ

ख़ुद के लिए एक नई जगह...



इक नई जगह तंग ही सही

पर जहाँ बेतरतीब पड़े रहे जज्बात मेरे

और यादों को कोई न छुए

हर वक्त सुकून का हो जहाँ

बेवक्त की टोका टोकी न रहे



तलाश रहा हूँ एक ऐसी जगह

बड़ी मुद्दत से

खुद के लिए!

Tuesday, November 17, 2009

अजनबी आवाज़



इक आवाज....
एक अजनबी आवाज़
हर वक्त मेरे साथ रहती है
दिन हो या के हो रात रहती है
मैं इसे देख सकता हूँ
छू सकता हूँ
महसूस करता हूँ...
सांसों के साथ जिस्म में समा जाती है
फिर लफ्ज़ों के साथ मुंह से निकल आती है,
मैं पूछता हूँ 'कौन हो?'
तो चुप हो जाती ही
और अचानक
खिलखिलाते हुए पास से गुज़र जाती है
मैं हैरां हूँ ,परेशां हूँ
क्यों ये अजनबी अपना तआरुफ़ नहीं कराती है...
ये आवाज़ सदियों से मुझे सताती है



पर आज की शब जब तुमसे मिला तो यूँ लगा ...
तुमसे मिलने से सदियों पहले तुम्हारी आवाज़ से मिल चुका
था